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पोलिंग बूथों की ठेकेदारी लेकर जिताने वालों के कान खड़े , मतदाताओं ने नेताओं के माथे की सिलवटें बढाई

•पोलिंग बूथों की ठेकेदारी लेकर जिताने वालों के कान खड़े 

•मतदाताओं ने नेताओं के माथे की सिलवटें बढाई

हमूदाबाद , सीतापुर - दीपक गुप्ता

विधानसभा चुनाव में 23 फरवरी को हुए मतदान को लेकर नगर एवं क्षेत्र तथा तीनों ब्लाकों के विभिन्न पोलिंग बूथों से छन-छन कर आ रही खबरों से उम्मीदवारों के साथ-साथ उनके खास समर्थकों की धुकधकी बढ़ गई है। चुनावी परिणाम को लेकर बहस के दौरान चेहरों पर उड़ने वाली हवाइयां और उभरती चेहरे की रंगत को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि समर्थक जीत के प्रति कितनी शंका और कितने विश्वास में हैं। बिना किसी दबाव, प्रभाव और प्रलोभन में आए जिस तरह से मतदाताओं ने वोटिंग की उससे अच्छे-अच्छों के कान खड़े हो गए हैं। मतदाताओं ने वोट के सौदागरों तथा ठेकेदारों की एक नहीं सुनी और अपनी मर्जी से वोटिंग की। ऐसे में कई ठेकेदार अपनी पोलिंग पर हार का मुंह देख जायें तो आश्चर्य नहीं होगा।  
चाहे सपा हो या भाजपा अथवा बसपा, सभी उम्मीदवार और उनके समर्थक जीत के लिए अपने-अपने तर्क दे रहे है, जातिवार आंकड़े बता रहे हैं। 



महमूदाबाद, पहला तथा रामपुर मथुरा क्षेत्र में जीत-हार का अंतर समझा रहे हैं। किंतु बातचीत करते वक्त उनके चेहरों पर बहस के दौरान सिलवटें साफ झलकती दिखाई देती हैं। किसी भी जाति और वर्ग का इकतरफा वोट किसी भी उम्मीदवार को नहीं मिला। यह आइने की तरह साफ दिखाई पड़ रहा है। अपने उम्मीदवार के सामने लंबी-चौड़ी हांकने वालों और प्रत्याशी को जीत का सब्जबाग दिखाने वालों को यह डर सताने लगा है कि यदि अपनी पोलिंग ही हार से नहीं बचा पाए तो क्या मुंह दिखायेंगे।  

सभी जातियों के वोटों में हुआ जमकर विभाजन- 

महमूदाबाद नगर पालिका के संगत किला, सुंदौली वार्डां में तथा पैंतेपुर, पुरानी बाजार, खुदागंज, महमूदाबाद खास, पैंगम्बरपुर, मानापुर, बाबूपुर, हेलेपारा, धर्मपुर, शेखपुर, बेढ़ौरा, सद्दूपुर महरिया, रेवाली, बेढ़ौरा सहित कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से छन-छन कर आ रही सूचनाओं से बिल्कुल साफ है कि अल्प संख्यक मतदाताओं का विभाजन सपा और बसपा के बीच हुआ है। मुस्लिम वोटों का विभाजन सपा के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है। मुस्लिमों की मानें तो ऐसा वोट दिलाने का ठेका लेने वालों के कारण प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ है। चुनाव के पहले तक मुस्लिम मतदाताओं का रूझान सपा की तरफ इकतरफा सा लग रहा था। किंतु मतदान के बाद उभरी तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। चुनावी मंचों से सार्वजनिक रूप से सपा को मुस्लिम मतों को दिलाने का वादा करने वाले दो नेताओं मे से एक के रातों-रात हांथी पर सवार हो जाने की चर्चायें जोरों पर हैं।

पूर्व मंत्री और विधायक के सजातीय मतदाताओं में विभाजन बना है चर्चा का विषय-

सपा उम्मीदवार एवं प्रदेश के पूर्व गन्ना एवं चीनी उद्योग मंत्री के सजातीय मतदाताओं में हुआ विभाजन पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। ज्यादातर पोलिंग स्टेशनों पर कहीं ज्यादा तो कहीं कम संख्या में हुए कुर्मी मतों के विभाजन को लेकर कई तरह की चर्चायें हैं। अभी तक के कई चुनावों में कुर्मी मतदाता करीब-करीब इकतरफा अपने सजातीय सपा उम्मीदवार का समर्थन करते रहे हैं। कुर्मी बहुल गांवों में यह विभाजन साफ तौर पर वोटिंग के दिन देखा गया। सिकंदराबाद, मीरानगर, सैदनपुर, निंदनपुर, बेहटी, मितौरा, केदारपुर, बिलासपुर, पड़ुखा, बघाइन, शेखपुर बिलौली, सलादीपुर, बिलौली बाजार, पहला, रायपुर, चांदपुर, बगराभारी, धौरहरा, टोड़कपुर, लोधौरी, लैलकलां, चतुराबेहड़, ख्वाबीपुर, किशुनपुरवा, केशरवारा, मेहरौली सहित कई अन्य कुर्मी बहुल्य गांवों में मतदाता सपा, भाजपा में विभाजित दिखे। कुछ का रूख बसपा की ओर भी दिखा। ग्राम प्रधान के चुनाव में उम्मीदवारों के गुटों के बीच बटे लोगों का असर विधानसभा चुनाव में दिखा। एक ने किसी का समर्थन किया तो दूसरे गुट ने दूसरे का।

वोट के ठेकेदारों की नहीं चली ठेकेदारी-

इस बार विधानसभा चुनाव में महमूदाबाद में वोट के ठेकेदारों की ठेकेदारी नहीं चली। तमाम मन्नतों और खुशामदों को दरकिनार करते हुए विशेष कर गरीब मतदाताओं ने बिना किसी दबाव और प्रभाव तथा लालच में आए अपने हिसाब से वोटिंग की। अंदर से छनकर आई खबरों ने ठेकेदारों की नींद खराब कर दी है। कुछ तो अपने हिसाब से अभी भी डायलाग्स बोल रहे हैं। किंतु समझदार लोगों को वोटिंग की हकीकत समझ में आने लगी है। ठेकेदारों को यह डर सता रहा है कि मतगणना के बाद सारी हकीकत सामने आ जाएगी और ऐसे में अपने-अपने उम्मीदवारों को आखिर जवाब क्या देंगे। लंबी-चौड़ी हांकने वालों और बड़ी-बड़ी बातें करने वालों को सबसे ज्यादा यह डर सता रहा है। काई भी पार्टी हो अथवा कोई अन्य कार्यक्रम, हर तरफ जीत-हार को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। सपा, भाजपा और बसपा खेमों के लोग अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
 
दलित मतदाताओं के विभाजन से डरे हैं उम्मीदवार- 

महमूदाबाद विधान सभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में दलित वोटर हैं। बसपा इन्हें अपना वोट मानकर चल रही थी। किंतु मतदान के दिन दलित मतदाता बसपा, भाजपा और सपा में विभाजित नजर आये। विशेषकर पासी मतदाताओं में यह विभाजन देखने को मिला। पासी मतदाताओं का विभाजन भी चुनावी हार-जीत को प्रभावित कर सकता है। ऐसा लोग मान रहे हैं। सामान्य वर्ग और पिछड़े वर्ग की अन्य जातियों के मतदाता भी सपा और भाजपा में विभाजित नजर आये। सभी जातियों के वोटरों में हुए विभाजन से उम्मीदवारों और उनके समर्थकों का चितिंत होना स्वाभाविक है। किसके सिर पर जीत का ताज बंधेगा, यह तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा। फिलहाल तो सपा, भाजपा और बसपा तीनों अपनी जीत पक्की मानकर चल रहे हैं। 

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