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UP Election 2022 : कुर्सी (फतेहपुर) विधानसभा का चुनावी समीकरण और विधायक का क्या है रिपोर्ट कार्ड


● वर्ष 2011 में अस्तित्व में आई थी कुर्सी सीट, 2012 में हुआ पहला चुनाव

3 लाख 73 हजार से अधिक वोटर तय करेंगे सिंहासन का राज


Report By - Asif Saeed


 

राजनीति में कुर्सी का बड़ा ही महत्व है. कुर्सी को लक्ष्य कर ही सियासी दल चुनावी रणभूमि में उतरते हैं. लेकिन आज हम जिस कुर्सी की बात कर रहे हैं वह कोई मुख्यमंत्री या मंत्री की कुर्सी नहीं बल्कि बाराबंकी जिले की एक विधानसभा सीट है. परिसीमन के बाद साल 2011 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर पहली बार 2012 में मतदान हुआ जिसमें समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी जबकि 2017 के चुनाव में कुर्सी की चुनावी बाजी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हाथ लगी.

कुर्मी और मुस्लिम बाहुल्य इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी यानी सपा का गढ़ माना जाता था लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सकेंद्र वर्मा ने इस सीट पर भगवा लहरा दिया. बाराबंकी जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर कुर्सी विधानसभा इंडस्ट्रियल एरिया के रूप में भी पहचान रखता है. राजधानी लखनऊ और सीतापुर मार्ग पर स्थित कुर्सी में कृषि भी होती है. यहां की जमीन काफी उपजाऊ है. यहां पर बड़ा पावर ग्रिड है तो अमरून मीट फैक्ट्री भी है. इस क्षेत्र में फतेहपुर तहसील, फतेहपुर और बेलहरा नगर पंचायत भी आती हैं.

यहां अवधी के साथ ही हिंदी और उर्दू भाषा बोली जाती है. फतेहपुर में रेलवे स्टेशन भी है जहां से लखनऊ, दिल्ली  समेत कई शहरों के लिए ट्रेन गुजरती हैं. यहां मझगवां शरीफ में प्रसिद्ध सूफी संत सुल्तान आरिफ अली शाह साहब और हजरत मखदूम शेख सारंग साहब की मजार है और इसी विधानसभा क्षेत्र के बेलहरा का बाबा साहब मंदिर भी प्रसिद्ध है.

विधानसभा पृष्ठभूमि-

साल 2011 के परिसीमन में कुर्सी गांव को विधान सभा का दर्जा मिला था. इससे पहले तक यह क्षेत्र फतेहपुर विधानसभा के रूप में जाना जाता था. फतेहपुर में तहसील, ब्लॉक और नगर पंचायत हैं जबकि कुर्सी एक ग्राम पंचायत है. कुर्सी विधानसभा सीट के लिए अबतक दो बार चुनाव हुए हैं. साल 2012 में इस सीट पर सपा की साइकिल दौड़ी थी तो 2017 में कमल खिल गया.

2017 में जनता का जनादेश-

कुर्सी विधानसभा सीट से बीजेपी के साकेंद्र प्रताप वर्मा ने 28 हजार 679 वोट के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. साकेंद्र ने समाजवादी पार्टी के फरीद महफूज किदवई को हराया था. सांकेद्र प्रताप को एक लाख 8 हजार 403 वोट मिले थे. साकेंद्र के निकटतम प्रतिद्वंदी फरीद को 79 हजार 724 वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार वीपी सिंह वर्मा 51 हजार 91 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. पीस पार्टी के टिकट पर पूर्व विधायक सरवर अली 8 हजार 329 वोट पर ही सिमट गए थे.

विधानसभा सामाजिक ताना-बाना-

चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक कुर्सी विधानसभा सीट पर कुल 3 लाख 73 हजार 90 वोटर हैं. इनमें 2 लाख 1 हजार 554  पुरुष हैं जबकि 1 लाख 71 हजार 533 महिलाएं हैं. यहां जातीय समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा तादाद ओबीसी और दलित बिरादरी के मतदाताओं की है. कुर्मी वोटरों की संख्या भी अधिक है और उसके बाद मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं. ब्राह्मण, ठाकुर वोटर भी निर्णायक स्थिति में हैं.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड-

कुर्सी विधानसभा सीट से विधायक 60 साल के साकेंद्र प्रताप वर्मा कानपुर विश्वविद्यालय से तीन विषयों में एमए हैं. इनके परिवार का कोई सदस्य पहले कभी राजनीति में नहीं रहा है. साल 1980 में लखीमपुर खीरी के वाईडी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई करते समय सियासी पारी का आगाज करने वाले साकेंद्र वर्मा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के टिकट पर कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे. ये सीतापुर के महमूदाबाद शहर के रहने वाले हैं. साकेंद्र पहली बार बीजेपी के टिकट पर कुर्सी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और बड़े अंतर से जीतकर विधायक भी बन गए. साकेंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे हैं

यूपी गन्ना विभाग के अध्यक्ष, महमूदाबाद चीनी मिल संगठन के डायरेक्टर रह चुके विधायक साकेंद्र वर्मा ने पांच साल में क्षेत्र का विकास करने का दावा किया है. उन्होंने अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि शिक्षा के लिए नए भवन बनवाए, आजाद इंटर कॉलेज का जीर्णोद्धार करवाया. कई सड़कों का निर्माण करवाया और NH-72H बाराबंकी से लखीमपुर का तक निर्माण का प्रस्ताव भेजा था जो लगभग पूरा भी हो चुका है. विधायक ने ये भी कहा कि फतेहपुर में कूड़ा डंपिंग सेंटर और बिशुनपुर, बद्दुपूर में अस्पताल और पशु चिकित्सालय भी बनवाए हैं. विधायक के दावों के विपरीत इनके सीतापुर जिले के महमूदाबाद में रहने और अपनी विधानसभा सीट में कम समय देने के कारण लोगों में नाराजगी भी नजर आ रही है.

विविध-

पिछले चुनाव में कुर्सी सीट से दूसरे नंबर पर रहे हाजी फरीद महफूज किदवई बाराबंकी के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और केंद्र के साथ ही प्रदेश की सरकार में भी कई बार कैबिनेट मंत्री रहे स्वर्गीय रफी अहमद किदवई के भतीजे हैं. कुर्सी सीट से 2012 के चुनाव में फरीद महफूज ने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. अखिलेश यादव ने भी किदवई को अपनी सरकार में राज्यमंत्री बनाया था.

2022 में किसे मिलेगी जीत-

अब 2022 के चुनावी संग्राम में सपा अपनी खोई सीट फिर से हासिल करने के लिए तो बीजेपी सीट बरकरार रखने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. बसपा, कांग्रेस, पीस पार्टी के साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी इस सीट पर मजबूत चुनौती पेश करने की तैयारी में हैं. देखना ये होगा कि 2022 के चुनाव में इस बार किस पार्टी के प्रत्याशी को जीत मिलती है. कुर्सी के मतदाता विधायक को लगातार दूसरा मौका न देने का इतिहास दोहराते हैं या ये इतिहास बदलता है, ये 2022 के चुनाव नतीजे ही बताएंगे.

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