देश में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर कई बार हुई घटनाओं ने सवालिया प्रश्न खडे किये है। पत्रकारों के साथ सरकारी अफसरों की बेअदबी अब आम सी हो गई है। पत्रकार के साथ मारपीट जैसी घटनाओं के बारे में तो हम सब सुनते ही हैं , साथ ही कई घटनाओं में तो पत्रकारों की हत्या कर दी जाती है। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया के लोगों के साथ कहीं कोई राजनेता तो कहीं कोई अफसर अपनी सड़कछाप गुंडई दिखाता मिल जाता है। लेकिन फिर भी सिस्टम के सहारे यह जल्द ही ऐसी घटनाओं के आरोप के बावजूद खुद का दामन साफ कर लेते हैं।
ताजा मामला बीती 21 दिसम्बर की रात का है , जब सीतापुर जनपद की महमूदाबाद कोतवाली परिसर में कवरेज के दौरान एक पत्रकार को नशे में चूर दरोगा और आरक्षियों ने दौड़ा - दौड़ा कर पीटा था। उस पत्रकार के साथ बर्बरता को उस रात वहां मौजूद एक बीजेपी नेता ने अपनी आंखों से देखा था जिससे यह बात बाहर तक आ गई , वरना न जाने एक वीडियो बनाने का जुर्म करने वाले उस पत्रकार पर पुलिस कौन कौन से आरोप जड़ देती।
हालांकि मामले की जानकारी आम होने के बाद मामले ने सोशल मीडिया पर जब जोर पकड़ा तो जनपद के हाकिम की चिरनिद्रा भी करीब घटना के 16 घण्टे बाद टूट ही गई और सुरूर में सवार पुलिसकर्मियों की इस सड़कछाप हरकत पर एक्शन लेते हुए उनका निलंबन कर दिया गया।
अब निलंबन को मात्र एक प्रक्रिया के रूप में देखने वाले विभागीय लोग गुपचुप तरीके से तो चर्चा करते मिल जाते हैं कि 15 दिनों में अपने साहब से रिपोर्ट लगवाकर ये सब बहाल हो जाएंगे। वहीं बीती 22 दिसम्बर को पीड़ित पत्रकार सूरज गुप्ता के द्वारा दी गई तहरीर पर आखिर अब तक अभियोग न दर्ज कर पुलिस विभाग के अफसर क्या संदेश देना चाहते हैं यह तो राम ही जाने। वहीं पीडित पत्रकार के साथ हुई घटना के तीन दिनों बाद तक न तो सर्कल अफसर ने जांच कर रिपोर्ट भेजी है और न ही मामले में किसी के बयान दर्ज किए हैं। उधर निलंबन के बाद सभी पुलिसकर्मी अपना एक साथ फोटो खिंचवा कर उनमें से एक आरक्षी गौतम कुमार उस फ़ोटो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर के अच्छी मुस्कान बिखेरते हुए लिखते हैं कि -
"एटीट्यूट के बाजार में जीने का अलग ही मजा है , लोग जलना नही छोड़ते और हम मुस्कुराना."
कुल मिलाकर भाई सन्देश क्या देना चाहते हैं जनाब ! यह समझने के लिए दिमाग पर जोर देने की जरूरत नही है । सन्देश साफ है कि हम सड़कछाप गुंडों की तरह आएंगे और तुम जैसे पत्रकारों को पीट कर अपने अफसरों की परिक्रमा कर फिर से कुछ दिनों बाद ड्यूटी बजायेंगे। वहीं इसी घटना में मानवाधिकार आयोग में आरक्षी हेमराज और गौतम कुमार को विपक्षी बना कर पीड़ित पत्रकार ने शिकायत दाखिल की है। जनपद के सभी पत्रकारों में इस घटना को लेकर घटना कारित करने वालों के खिलाफ आक्रोश है । वहीं श्रमजीवी पत्रकार संग़ठन और वर्किंग प्रेस एसोसिएशन ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को मामले में अपनी रिपोर्ट भेजी है। स्थानीय पत्रकारों में भी इस घटना के बाद से अभियोग न पंजीकृत करने को लेकर नाराजगी बनी हुई है।
कैसे और क्या थी घटना-
उत्तर प्रदेश पुलिस में कुछ ऐसे वर्दी वाले दागदार मौजूद है जो विभाग की किरकिरी कराने के साथ साथ पुलिस महकमे को बदनाम भी कराते हैं। कहते है कि "एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है" कुछ ऐसा ही हो रहा है उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रशासन के साथ एक तरफ अधिकांश पुलिस वाले मेहनत से अपना काम कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कुछ पुलिस वालों की करतूतों से पूरा पुलिस प्रशासन सवालों के कटघरे में खड़ा है। उत्तर प्रदेश की पुलिस की शर्मनाक करतूत सामने आई है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की महमूदाबाद कोतवाली में 21-22 दिसम्बर की रात करीब 11 बजे मारपीट के विवाद की जानकारी पाकर एक हिंदी दैनिक समचार पत्र का संवाददाता कवरेज के लिए चला जाता है अब उसे कहां मालूम था कि हर रात की तरह आज रात को भी थाने में तैनात दरोगा झरिया सिंह और उनके साथी हेमराज , गौतम और अनूप नशे में ऐसा डूबे होंगे कि न तो उन्हें अपने ओहदे की याद होगी और न ही पुलिस विभाग की। महमूदाबाद कोतवाली परिसर में कवरेज करने गए महमूदाबाद कस्बा निवासी पत्रकार सूरज गुप्ता को वहां मौजूद दरोगा झरिया सिंह ने वीडियो बनाने से रोकने के लिए उसका मोबाईल अपने साथियों संग छीनने का प्रयास किया और जब सूरज ने इसका विरोध किया तो पहले कई बार जनपद में ही लाइन हाजिर हो चुके दरोगा झरिया सिंह उसे मारने लगे । दरोगा झरिया सिंह का मन इतने से नही भरा उन्होंने अपने साथी गौतम , हेमराज औए अनूप को बुला लिया जिसके बाद पत्रकार को कोतवाली परिसर में बुरी तरह पीटने लगे। अपने किसी निजी कार्य से कोतवाली आये बीजेपी नेता ने जब यह घटनाक्रम देखा तो उन्होंने इसकी सूचना एक पत्रकार साथी को दी जिसके बाद आनन फानन में कस्बे के पत्रकार कोतवाली पहुंचे जहां पत्रकार साथी को हिरासत में लिए गए लोगों के साथ रखा गया था। जब देर रात कोतवाली पहुंचे पत्रकार साथियों ने इसका विरोध किया और प्रभारी निरीक्षक को मामले की जानकारी दी , जिसके बाद पत्रकार को छोड़ा गया। वहीं पत्रकार सूरज को घायल अवस्था मे इलाज के लिए सीएचसी ले जाया गया जहां इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे घर भेज दिया।
पत्रकार सूरज गुप्ता की मानें तो दरोगा झरिया सिंह ने उसके परिचय देने के बाद उससे कहा कि मेरा मीडिया से 36 का आंकड़ा है और मेरा सामान हर समय पैक रहता है और इतना कहते ही उसको पीटने लगे , पिटाई के दौरान कई बार सूरज जमीन में गिरा लेकिन उनके साथियों ने उसे उठाया और उसके कपड़े फाड़ दिए। इस तरह की घटना के बाद पुलिस विभाग से आम लोगों का भरोसा तो उठ ही रह है। प्रदेश के मुखिया के प्रेस की आजादी पर दिए जाने वाले भाषण भी अब सिर्फ कागजी मालूम पड़ रहे हैं।