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"जन-जन की है यही पुकार , जिला बने महमूदाबाद...?"

विधानसभा चुनाव में जहां विकास के मुद्दे छाए रहते थे, लेकिन अब जातीय समीकरण हावी हो गए हैं। आलम यह है कि विधानसभा में रोजगार के संसाधन न होने से बड़ी संख्या में युवा दूसरे राज्यों और शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। सूत मिल और छोटे कारखाने बंद होने से विधानसभा के बेरोजगार युवा भी बाहरी जनपदों में जा कर रोजगार के संसाधन तलाश रहे हैं। हैरत की बात तो यह है कि 1980 में निवर्तमान विधायक और कैबिनेट मंत्री डॉ. अम्मार रिजवी द्वारा सूत मिल की आधारशिला 1980 में रखी गई थी , जो 1985 में बनकर तैयार हो गई थी। लेकिन धीरे धीरे सूत मिल घाटे में जाती रही और उसे वर्ष 2000 में बन्द कर दिया गया। जिसके बाद क्षेत्र के हजारों की संख्या में मतदाता बेरोजगार हुए थे। आज भी आलम यह है कि महमूदाबाद विधानसभा में संचालित चीनीमिल प्रतिवर्ष निरन्तर घाटे में जा रही है लेकिन इसको लेकर भी जनप्रतिनिधियों में कोई चिंता नही है और न ही यह उनके चुनावी मुद्दों में शामिल है। अब के जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कोई उद्योग आदि स्थापित कराने की पहल और घोषणा भी नहीं की है। आज भी विधानसभा में उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए युवाओं को बाहरी जनपदों में जाना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए निजी कॉलेजों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। कई इलाकों से तहसील मुख्यालय तक आने के लिए संसाधनों का अभाव है। अब चुनाव में इन मुद्दों की जगह जातीयता हावी हो गई है। राजनीतिक दल सजातीय मतों को देखकर टिकट का फैसला करते है और उसका लाभ भी उन्हें मिलता रहा है। इस बार दो दलों ने एक ही जाति के प्रत्याशी को मैदान में उतारकर चुनाव रोचक बना दिया है।


 

चुनाव में शिक्षा, रोजगार, सड़क और पानी के मुद्दे हुए गायब-

विधानसभा में कोई फैक्टरी न होने से युवा रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं। जानकारी के मुताबिक प्रतिवर्ष करीब 10 हजार युवा गैर प्रांतों में लखनऊ, इंदौर, दिल्ली, मुंबई आदि स्थानों पर रोजगार के लिए जा रहे हैं। इधर कारखाने (सूत मिल) बंद होने के बाद कारीगर भी दो जून की रोटी के लिए गैरजनपदों में पलायन कर चुके हैं या ठेला लगाकर जीवन यापन कर रहे हैं। चुनाव में समस्याओं से जूझ रहे ग्रामीणों के सामने कोई सड़क बनवाने तक का आश्वासन नहीं दे रहा। हैरत की बात तो यह है कि कस्बों ( महमूदाबाद - पैंतेपुर) की करीब 50 हजार की आबादी पेयजल समस्या से जूझ रही लेकिन उस पर भी कोई बोल नहीं रहा। छात्र- छात्राओं को उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए संस्थान चाहिए लेकिन उस पर भी कोई प्लान नहीं है। क्षेत्र में एक पॉलिटेक्निक है लेकिन उसकी शिक्षा पूर्ण करने के बाद छात्र छात्राओं को गैर जनपद के ही रुख करना पड़ता है।


"जन-जन की है यही पुकार , जिला बने महमूदाबाद" -

विधानसभा महमूदाबाद से जनपद मुख्यालय की दूरी तकरीबन 60 किमी है। किसी भी तरह के सरकारी कार्य के लिए आमजनों को जिला मुख्यालय आने जाने में भारी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। लगातार क्षेत्रवासियों ने शासन से महमूदाबाद को जिला बनाने की मांग की है , लेकिन यह मांग जनप्रतिनिधियों के कानों तक पहुंचते पहुंचते बेअसर हो जाती है। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्रवासियों में एक आस उस वक़्त जगी थी जब समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए अखिलेश यादव क्षेत्र के पचासा मैदान में जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। अखिलेश यादव ने मंच से घोषणा की थी कि अगर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और कोई भी नया जिला बनाया गया तो सबसे पहले महमूदाबाद को जिला बनाया गया। लेकिन 2012 से 2017 तक कार्यकाल के दौरान अखिलेश सरकार ने प्रदेश में कोई नया जिला नही बनवाया। सरकारी कर्मचारी के भी कार्य जिला मुख्यालय दूर होने के कारण बाधित होते हैं। जिला मुख्यालय आने जाने में पूरा दिन का समय लगने के कारण कई अफसरों को भी हर दिन दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। लेकिन वर्तमान चुनाव में सबसे बड़े इस मुद्दे को भी जनप्रतिनिधियों ने अपने मुद्दों और घोषणाओं में शामिल नही किया है।

देखें सपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह वर्मा का एक्सक्लूसिव साक्षात्कार-



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