● सीतापुर की महमूदाबाद विधानसभा में प्रचंड मोदी लहर का भी नही हुआ था असर
● दल की नही हमेशा व्यक्ति विशेष पर मेहरबान रहे हैं इस विधानसभा के वोटर
Report By - Deepak Gupta
समाजवादी पार्टी का कब्जा वर्ष 2006 के बाद से महमूदाबाद विधानसभा सीट पर बना हुआ है। आगामी चुनाव 2022 में देखना यह होगा कि इस विधानसभा पर समाजवादी पार्टी को कौन सा दल टक्कर दे पायेगा या सपा को वाक ओवर मिलेगा। फिलहाल विधानसभा महमूदाबाद में भाजपा ने अपने पत्ते नही खोले हैं लेकिन यह जरूर है कि महमूदाबाद विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले टिकटार्थियों की फेहरिस्त लम्बी है। इसमें कुछ लोग ऐसे भी शामिल हैं जो दूसरे दलों से आये हैं लेकिन टिकट भाजपा से चाहते हैं। कमल की सियासत और सियासत के नए फूलों का हश्र क्या होगा यह तो भविष्य के गर्त में है। देखना यह होगा कि भाजपा अपने निष्ठावान कार्यकर्ता को टिकट देती है या टिकट की आस में पक्के भाजपाई का दायित्व निभा रहे कुछ नए चेहरों में से एक पर दांव लगाती है। स्थानीय लोगों की मानें तो इस बार का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। बसपा से किसी मुस्लिम उम्मीदवार के इस सीट पर चुनाव लड़ने से सपा की मुश्किलें बढ़ेंगी वहीं भाजपा को इसका फायदा भी मिलेगा। महमूदाबाद विधानसभा सीट उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले की सीमा को बाराबंकी से जोड़ती है। वहीं इस सीट को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाहें भी यहां लगी हुई हैं। बीते चुनावी परिणामो पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी का व्यक्तिगत व्यवहार भी लोगों को उनसे जोड़ता है। पूर्व सपा सरकार ने महमूदाबाद विधानसभा से चुनाव जीते विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा को अपनी कैबनेट में भी जगह दी थी। 2017 के चुनाव में चल रही प्रचंड लहर के बीच भी नरेंद्र सिंह वर्मा साईकल चला कर चुनावी नदी को पार कर जिले में सपा की एक सीट बचाने में कामयाब रहे थे। विधानसभा महमूदाबाद के बॉर्डर का इलाका सपा के साथ इस बार भी खड़ा है।
महमूदाबाद विधानसभा में चुनाव लड़ने की तैयारी में नए कमल के फूल-
वैसे तो महमूदाबाद विधानसभा में लगभग सत्ता में मौजूद भाजपा से टिकट मांग रहे दो दर्जन से ज्यादा लोग मैदान में हैं। बीते विधानसभा चुनाव में लगभग 1906 वोटों से हार का मुंह देखने वाली आशा मौर्या को लगातार पार्टी और संग़ठन के द्वारा विशिष्ट कार्यक्रम देकर उन पर भरोसा जताया जा रहा है। वहीं स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और 2017 के चुनाव में अपनी प्रबल दावेदारी साबित कर रहे पूर्व चेयरमैन सुरेश वर्मा जो कि 1990 के दशक से राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े हुए हैं उन्हें बीते विधानसभा चुनाव में टिकट न देकर संग़ठन द्वारा गलती किये जाने की चर्चाएं पांच वर्षों से होती आ रही हैं। बतौर नगर पालिका चैयरमैन सुरेश वर्मा ने कस्बे का विकास किया था और एक बड़े जनसमूह को अपने साथ जोड़ लिया था जो उनका मजबूत वोट बैंक भी है। इस बार भी सुरेश वर्मा कमल के सिंहासन की चाहत में लाइन में लगे हैं। आम लोगों की मानें तो सुरेश वर्मा पर अगर बीजेपी दांव लगाए तो इस बार सपा का विकेट गिर सकता है।
वहीं लखनऊ की राजनैतिक गलियों में परिक्रमा कर खुद को प्रदेश के एक बड़े नेता का खास आश्वासन पाकर युवा नेता चुनाव की तैयारियों में जोर शोर से जुटे हुए हैं। इन युवा नेता के चुनाव में आने से जातीय समीकरण के अनुसार फिलहाल तो इन्हें मजबूती मिलेगी। दूसरी विधानसभा क्षेत्र की निवासी एक महिला प्रत्याशी जिन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री का खास माना जा रहा है , टिकट मिलने के आश्वासन के बाद लगातार जनसम्पर्क कर रही हैं । बीते दिनों दिल्ली की परिक्रमा कर खुद को पार्टी और संग़ठन में मजबूत कर कमल के सिंहासन पर बैठने का सपना संजोए हुए हैं।
समीकरण-
2017 विधानसभा चुनाव में चली मोदी लहर में सीतापुर जिले की 9 विधानसभाओं में से सात पर भाजपा ने अपना कब्जा कर लिया । लेकिन दो विधानसभा सीटों पर मोदी लहर भी मंद पड़ गई। इसमें एक सीट है महमूदाबाद विधानसभा की सीट । पिछले चुनावी परिणामों पर नजर डालें तो यहां वर्तमान विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा का नाम बार - बार आता है। खास बात यह है कि नरेंद्र सिंह वर्मा किसी भी दल से चुनाव लड़ते हों पर जीत का सेहरा उनके सर ही बंधता है। नरेंद्र सिंह वर्मा तीन बार भाजपा से विधायक रहे , इसके बाद 2007 मे इन्होंने सपा का दामन थाम लिया और लगातार तीन बार से विधायक हैं। हालांकि 2017 के चुनाव में भाजपा ने इन्हें कड़ी टक्कर देते हुए दूसरे नम्बर पर आकर अपनी बढ़त बनाई थी।
महमूदाबाद विधानसभा का इतिहास-
2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भी यह सीट सपा के खाते में गई थी। इसमें नरेंद्र सिंह वर्मा ने भाजपा की आशा मौर्या को 1906 वोटों से हराया था। इस चुनाव में बसपा तीसरे नंबर पर रही थी। वहीं 2012 में सपा से नरेंद्र सिंह वर्मा ने बसपा के अहमद अंसारी को 19589 वोटों से शिकस्त दी थी। अब वही अहमद अंसारी सपा में शामिल होकर नरेंद्र सिंह वर्मा के साथ हैं।
इस विधानसभा में 1962 को हुआ था पहला चुनाव-
महमूदाबाद विधानसभा सीट पर पहली बार चुनाव 1962 में हुआ था। इस चुनाव में शिवेंद्र प्रताप जनसंघ से चुनाव लड़े और विधायक भी बने थे। 1967 में बी. प्रसाद एसएसपी के टिकट पर विधायक बने थे। 1969 में श्याम सुंदर लाल गुप्ता ने जीत दर्ज कर इस विधानसभा पर कांग्रेस का खाता खोला था। 1974 में एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस काबिज हुई और अम्मार रिजवी विधायक बने थे। 1977 में जीएनपी के रामनरायण वर्मा यहां के विधायक चुने गए। 1980 में कांग्रेस के अम्मार रिजवी इसी सीट से दोबारा विधायक बने । इसके बाद 1985 और 1989 में कांग्रेस के ही टिकट पर राजा महमूदाबाद आमिर खान लगातार दो बार विधायक रहे। 1991 में पोखरा गांव से आये नौजवान नरेंद्र सिंह वर्मा ने बीजेपी का खाता इस सीट पर खोला। 1993 में भी नरेंद्र सिंह वर्मा ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1996 के चुनाव में कांग्रेस और बसपा के गठबंधन से अम्मार रिजवी ने नरेंद्र सिंह वर्मा को पटखनी देकर यह सीट एक बार फिर कांग्रेस के खाते में शामिल कर ली थी। 2002 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर नरेंद्र सिंह वर्मा को अपना चेहरा बना कर उतारा और 2006 में साईकल सवार होकर नरेंद्र सिंह वर्मा 2007 से 2017 के चुनाव तक लगातार साईकल चलाते आ रहे हैं।
महमूदाबाद विधानसभा का समीकरण-
2021 की जनगणना के अनुसार 2 लाख 26 हजार से अधिक मतदाताओं (तकरीबन 80 हजार नई सूची में बढ़ी वोट) वाली इस विधानसभा का जातीय समीकरण भी काफी जटिल है। पिछड़ा और अतिपिछड़ा बाहुल्य महमूदाबाद विधानसभा में कुर्मी जाति और मुस्लिम वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। अनुमानित 75000 से अधिक कुर्मी वोट वाली इस विधानसभा में लगातार पांच बार से कुर्मी विधायक ही जीत हासिल कर रहा है। इस बार कांग्रेस और बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी ठोंक कर अनुमानित मुस्लिम 55000 से अधिक वोटों में सेंध लगाकर समीकरणों में फेरबदल करने के प्रयास में जुटे हैं। वहीं अनुसूचित जाति का तकरीबन 130000 वोट बीजेपी , बसपा और सपा में बंटता दिखाई दे रहा है। इस बार का त्रिकोणीय मुकाबला सभी दलों के नेताओं की बैतरणी पार कराने से पहले चक्रवात से जरूर गुजरने को मजबूर करेगा।